श्री रामाष्टकम्: संस्कृत श्लोक, हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद सहित – Shri Rama Ashtakam: Sanskrit Verses with Hindi and English Translation

श्री रामाष्टकम् | Rama Ashtakam | Madhvi Madhukar
Shri Rama Ashtakam: Sanskrit Verses with Hindi and English Translation

श्री रामाष्टकम्: संस्कृत श्लोक हिंदी अनुवाद सहित।

“श्री रामाष्टकम्” ऋषि व्यास जी द्वारा रचित एक संस्कृत स्तोत्र है। “अष्टकम्” का अर्थ होता है आठ श्लोकों का एक समूह। रामाष्टकम् में आठ श्लोक हैं जो भगवान राम के विभिन्न गुणों और कृत्यों का वर्णन करते हैं। भगवान राम को एक आदर्श पुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है। श्री रामाष्टकम् में प्रत्येक श्लोक में उनकी दिव्यता, करुणा, बल, न्यायप्रियता, और उनके द्वारा किए गए विभिन्न लीलाओं का उल्लेख है। ऋषि व्यास जी द्वारा रचित यह स्तोत्र न केवल भगवान राम की भक्ति में लीन होने के लिए ही उपयुक्त है, बल्कि उनके चरित्र को पूर्ण रूप से समझने व् उसे अपने जीवन में अपनाने का एक मार्ग भी है।

“श्री रामाष्टकम्” किसी भी उपासक के लिए आध्यात्मिक शांति और प्रेरणा प्राप्त करने का एक उत्तम साधन है।

॥ श्री रामाष्टकम् ॥

१. भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥

मैं विशेष रूप से सुंदर, सभी पापों का नाश करने वाले, अपने भक्तों के मन को आनंदित करने वाले अद्वितीय राम की आराधना करता हूं।

२. जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकं ।
स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥

जिनकी जटा उनकी शोभा बढ़ाती है, जो सभी पापों का विनाश करते हैं और अपने भक्तों के डर को दूर करते हैं, उस अद्वितीय राम की मैं आराधना करता हूं।

३. निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।
समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥

मैं उस राम की उपासना करता हूँ जो स्वभाव से प्रकाशमान हैं, कृपालु हैं, दुःखों को दूर करने वाले हैं, समतायुक्त, शुभ और निर्मल है, और द्वैत से रहित है।

४. सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।
निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥

जो संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ कल्पित हैं लेकिन वास्तव में नाम और रूप से परे हैं, निराकार और निर्दोष हैं, उस राम की मैं पूजा करता हूं।

५. निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।
चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम् ॥

जो संसार की माया से मुक्त, निर्विकल्प, निर्मल और निर्दोष हैं, चेतना के एकरूप रूप में स्थित हैं, उस राम की मैं पूजा करता हूं।

६. भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।
गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥

मैं उस राम की उपासना करता हूँ, जो संसार-सागर के जीवन-रूपी नौका के समान हैं, जो सभी शारीरिक रूपों से निर्मित हैं, जो गुणों का भंडार हैं, और जो कृपालु हैं, और द्वैत से रहित हैं।

७. महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।
परं ब्रह्मसद्व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥

मैं उस राम की उपासना करता हूँ, जो महावाक्यों द्वारा व्यक्त किए गए शब्दों में विराजमान हैं, और जो परम ब्रह्म हैं जो सब में व्याप्त हैं, और द्वैत से रहित हैं।

८. शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।
विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥

मैं उस राम की उपासना करता हूँ, जो शिव (मंगल) प्रदान करते हैं, सुख प्रदान करते हैं, भव (संसार) की बंधनों को काटते हैं, और भ्रांतियों को दूर करते हैं; जो एक दिव्य गुरु के रूप में प्रकट होते हैं, और द्वैत से रहित हैं।

फलश्रुति:

रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं,
व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं,
संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्॥

जो व्यक्ति इस सुखद और अत्यंत पुण्यप्रद रामाष्टकम् का पाठ करता है, जिसे व्यास ने कहा है और जिसे मनुष्य सुनता है, वह विद्या, संपत्ति, विशाल सुख, अनंत कीर्ति प्राप्त करता है, और शरीर के विनाश के समय मोक्ष भी प्राप्त करता है।”

॥ इति ॥

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