श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् | Shri Durga AshtottarashataNaama Stotram: Read the Text in Sanskrit, Hindi & English

Shri Durga Ashtotar Shatnam Stotram | Anuradha Paudwal | Chanting of 108 Names of Durga
श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् | Shri Durga AshtottarashataNaama Stotram: A powerful stotram consisting of the 108 divine names of Mother Durga as described in Shri Durga Saptashati.

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्: श्रीदुर्गासप्तशती में वर्णित माँ दुर्गा के 108 दिव्य नामों का शक्तिशाली स्तोत्र

‘श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्’ का वर्णन ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ में किया गया है जो हिंदू तंत्र शास्त्र ‘विश्वसारतन्त्र’ का एक ग्रंथ है। इस ग्रंथ में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों, उनकी साधना, मंत्रों और स्तोत्रों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ‘श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्’ देवी दुर्गा के 108 नामों का एक स्तोत्र है, जो उनकी विभिन्न शक्तियों और गुणों का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का जप करना विशेष रूप से दुर्गा पूजा और नवरात्रि जैसे त्योहारों के दिनों में बहुत शुभ माना गया है। इन दिनों एक विशेष ऊर्जा का संचार वातावरण में महसूस किया जा सकता है जो हर प्रकार से भक्ति और साधना के लिए अनुकूल होते हैं। इस समय की गयी उपासना हमारे जीवन के हर क्षेत्र से हमारे लिए उन्नति के आगमन में सहायक सिद्ध होती है ; फिर चाहे वह मानसिक उन्नति हो, आध्यात्मिक उन्नति हो या फिर अन्य सभी प्रकार की भौतिक सुख-समृद्धि ही क्यों न हो।

यह स्तोत्र वास्तव में एक संवाद का हिस्सा है, जो भगवान शिव (ईश्वर) और उनकी पत्नी पार्वती (कमलानने) के बीच होता है। इसमें भगवान शिव माता पार्वती को देवी दुर्गा के 108 नामों के महत्व के बारे में बता रहे हैं। ये नाम देवी ‘दुर्गा’ की विभिन्न शक्तियों और गुणों के प्रतीक हैं। इस स्तोत्र के माध्यम से शिव पार्वती को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि किस प्रकार दुर्गा के विभिन्न रूपों का स्मरण करना चाहिए और कैसे देवी की उपासना करने से एक व्यक्ति जीवन की विभिन्न बाधाओं को पार कर सकता है।

॥ ॐ श्रीदुर्गायै नमः ॥

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

ईश्वर उवाच: शंकरजी पार्वती से कहते हैं।

१. शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती॥

“मैं 108 नामों का उच्चारण करूँगा, सुनो हे कमल के समान मुखवाली, जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्र से भगवती दुर्गा प्रसन्न होती हैं।”

२. ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी॥

“ॐ सती, साध्वी (धर्मनिष्ठा), भगवान् शिव पर प्रीती रखनेवाली, भवानी, संसार से मुक्ति देने वाली, आर्या, दुर्गा, विजयी, आदि रूप, तीन नेत्रों वाली, त्रिशूल धारण करने वाली।”

३. पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥

“पिनाक (शिव का धनुष) धारण करने वाली, चित्रा (अद्भुत), चंद्रघंटा, महान तपस्विनी, मन, बुद्धि, अहंकारा (अहंता का आश्रय), चेतना की प्रकृति और जागरूकता।”

४. सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः॥

“सभी मंत्रों में समाहित, सत्ता (सत-स्वरूपा), सच्चिदानंद की स्वरूपिणी, अनंत, सबको उत्पन्न करने वाली, भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), भव्या (कल्याणरूपा), अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), सदागतिः (सदैव शरण)।”

५. शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी॥

“शाम्भवी (शिवप्रिया), देवताओं की माता, चिंता, सदैव रत्नों से प्रिय, सभी विद्याओं की ज्ञाता, दक्ष की कन्या, दक्ष यज्ञ की विनाशक।”

६. अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी॥

“अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खानेवाली), अनेक रंगों वाली, पाटला (लाल रंग वाली), पाटलावती (लाल फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्रों से सुशोभित), मधुर ध्वनि करने वाले मञ्जीर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली।”

७. अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता॥

“असीम पराक्रमवाली, दैत्यों के प्रति कठोर, सुंदरी, दिव्य सुंदरी, वन दुर्गा, मातंगी, मतंग ऋषि द्वारा पूजित।”

८. ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः॥

“ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी, साकार मनुष्य रूप में।”

९. विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥

“विशुद्ध, ज्ञानी, क्रिया, नित्या (सदा), बुद्धि देने वाली, प्रचुर, अत्यधिक प्रेमी, सभी वाहनों की सवार।”

१०. निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी॥

“निशुम्भ और शुम्भ का वधकर्ता, महिषासुर की नाशक, मधु और कैटभ की वधकर्ता, चंड और मुंड की विनाशिनी।”

११. सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा॥

“सभी असुरों की नाशक, सभी दानवों की नाशक, सभी शास्त्रों की स्वरूपिणी, सत्य, सभी अस्त्रों की धारिणी।”

१२. अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः॥

“अनेक शस्त्रों से सज्जित, अनेक अस्त्रों की धारक, कुमारी, एकमात्र कन्या, कैशोरी, युवती, और संन्यासिनी (विरक्त)।”

१३. अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥13॥

“न वृद्ध, यथार्थ विकसित, वृद्ध माता, बल की दात्री, बड़ी उदर वाली, खुले केश वाली, भयानक रूप वाली, अत्यंत बलशाली।”

१४. अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥

“अग्नि की ज्वाला, क्रूर मुख वाली, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जल के गर्भ में उत्पन्न होनेवाली।”

१५. शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी॥

“शिव की दूत, भयानक, अनंत, सर्वोच्च देवी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्ष, वेद की वाणी बोलने वाली।”

१६. य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति॥

“जो कोई नियमित रूप से दुर्गा के इस अष्टक का पाठ करता है, हे देवी पार्वती, तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं होता।”

१७. धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम्॥

“धन, अनाज, पुत्र, जीवनसाथी, घोड़े, हाथी भी, और इस प्रकार जीवन के चार लक्ष्य, और अंत में, शाश्वत मुक्ति।”

१८. कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्॥

“कुमारी की पूजा करके और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके, कोई भी उत्कृष्ट भक्ति के साथ पूजा करे और इस अष्टक का पाठ करे।”

१९. तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्॥

“ऐसे व्यक्ति के लिए, हे देवी, सर्वश्रेष्ठ देवताओं द्वारा भी सिद्धि प्रदान की जाती है। राजा भी अधीन हो जाते हैं, और व्यक्ति राजसी वैभव प्राप्त करता है।”

२०. गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः॥

“गोरोचना, लाख और कुमकुम से, सिंदूर, कपूर और मधु के साथ, यंत्र को लिखकर, जानकार व्यक्ति को चाहिए कि वह इसे सदा शिव की तरह धारण करे।”

२१. भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्॥

“अमावस्या की रात को, जब चंद्रमा शतभिषा में हो, इस स्तोत्र को लिखकर और पढ़कर, व्यक्ति समृद्धि की स्थिति प्राप्त करता है।”

॥ इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥

Scroll to Top
Left Menu Icon