श्री कृष्ण चालीसा – Shri Krishna Chalisa in Hindi & English

Shri Krishna Chalisa (श्री कृष्ण चालीसा) with Hindi Lyrics | @BhajanShrinkhla
Shri Krishna Chalisa

श्री कृष्ण चालीसा

श्री कृष्ण चालीसा का महत्व

भगवान् श्री विष्णु के आठवें अवतार, ‘भगवान् श्री कृष्ण’ हम सबके आराध्य, प्रिय और लाडले हैं। भारत के साथ ही संपूर्ण विश्व में उनका एक विशिष्ट स्थान है। श्री कृष्ण का आशीर्वाद और उनकी शिक्षाएँ, उन्ही के द्वारा हमें ‘भगवद गीता’ के माध्यम से प्राप्त हुई हैं। उन्होंने धर्म और न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया, गीता उपदेश दिया और जीवन जीने की कला का प्रदर्शन भी किया। आज विश्व में उनके करोड़ो भक्त हैं जो उनके दिखाए मार्ग पर चल कर भक्ति और विश्व कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं।

श्री कृष्ण चालीसा भगवान् कृष्ण की उपासना का एक साधन है। इसमें 40 छंद हैं और इसे पढ़ने या गाने से उनके भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है, साथ ही यह उन्हें दैनिक जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है। श्री कृष्ण चालीसा का महत्व यह है कि यह श्री कृष्ण के विभिन्न अवतारों और उनके द्वारा किए गए कर्मों का गुणगान करता है, और इसे पढ़ने वाले भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

“आइए हम सब कृष्ण चालीसा के माध्यम से प्रेम और भक्ति की गंगा में डुबकी लगाएं।”

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बाफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशोदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर नाग नथइया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरो ।
होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

रंजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजयंती माला ॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे ।
कटि किंकणी काछन काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो ।
अका बका कागासुर मारयो ॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला ।
भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई ।
मूसर धार वारि वर्षाई ॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नखधारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहारयो ।
कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मारयो ।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखि प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हांके ।
लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये ।
भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥

मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा सांप पिटारी ।
शालिग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करी तत्काला ।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावत नैया ॥

सुन्दरदास आस उर धारी ।
दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जय ॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥

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