विन्ध्येश्वरी देवी चालीसा I Vindhyeshwari Chalisa – in Hindi & English

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा I Shri Vindhyeshwari Chalisa I SANJAY GIRI I @TSeriesBhaktiSagar
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा | Shri Vindhyeshwari Chalisa – Durga Chalisa

विन्ध्येश्वरी देवी चालीसा

॥ दोहा ॥

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।
संत जनों के काज में, करती नहीं विलम्ब॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी, आदि शक्ति जगविदित भवानी ।
सिंहवाहिनी जय जगमाता, जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ।

कष्ट निवारिणी जय जगदेवी, जय जय संत असुर सुर सेवी ।
महिमा अमित अपार तुम्हारी, शेष सहस मुख वर्णत हारी ।

दीनन के दु:ख हरत भवानी, नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी ।
सब कर मनसा पुरवत माता, महिमा अमित जगत विख्याता ।

जो जन ध्यान तुम्हारो लावे, सो तुरतहिं वांछित फल पावे ।
तुम ही वैष्णवी तुम ही रुद्राणी, तुम ही शारदा अरु ब्रह्माणी ।

रमा राधिका स्यामा काली, तुम ही मात संतन प्रतिपाली ।
उमा माधवी चंडी ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला ।

तुम ही हिंगलाज महारानी, तुम ही शीतला अरु विज्ञानी ।
तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता, दुर्गा दुर्ग विनाशिनि माता ।

तुम ही जाह्नवी अरु उत्राणी, हेमावती अंबे निरवाणी ।
अष्टभुजी वाराहिनि देवी, करत विष्णु शिव जाकर सेवी ।

चौसट्टी देवी कल्याणी, गौरि मंगला सब गुन खानी ।
पाटन मुंबा दंतकुमारी, भद्रकाली सुन विनय हमारी ।

वज्रधारिणी शोकनाशिनी, आयु रच्छिणी विन्ध्यवासिनी ।
जया और विजया बैताली, मातु सुगंधा अरु बिकराली ।

नाम अनंत तुम्हार भवानी, बरनै किमि मानुष अज्ञानी ।
जापर कृपा मातु तव होई, तो वह करै चहै मन जोई ।

कृपा करहु मोपर महारानी, सिद्ध करिये अब यह मम बानी ।
जो नर धरै मातु कर ध्याना, ताकर सदा होय कल्याणा ।

बिपत्ति ताहि सपनेहु नहि आवै, जो देवी का जाप करावै ।
जो नर कहं ऋण होय अपारा, सो नर पाठ करे शतबारा ।

निश्चय ऋण मोचन होई जाई, जो नर पाठ करे मन लाई ।
अस्तुति जो नर पढै पढावै, या जग में सो अति सुख पावै ।

जाको ब्याधि सतावै भाई, जाप करत सब दूर पराई ।
जो नर अति बंदी महं होई, बार हजार पाठ कर सोई ।

निश्चय बंदी ते छुटि जाई, सत्य वचन मम मानहु भाई ।
जापर जो कुछ संकट होई, निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ।

जा कहँ पुत्र होय नहि भाई, सो नर या विधि करै उपाई ।
पाँच वर्ष सो पाठ करावै, नौरातन में विप्र जिमावै ।

निश्चय होहि प्रसन्न भवानी, पुत्र देहि ताकहँ गुनखानी ।
ध्वजा नारियल आन चढावै, विधि समेत पूजन करवावै ।

नित प्रति पाठ करै मन लाई, प्रेम सहित नहि आन उपाई ।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा, रंक पढत होवै अवनीसा ।

यह जनि अचरज मानहुँ भाई, कृपा दृष्टि जापर ह्वै जाई ।
जय जय जय जगमातु भवानी, कृपा करहु मोहि पर जन जानी ।

॥ इति ॥

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